कर्ण पिशाचिनी-एक अनोखी कहानी Part-1
आज crazyhorrormint लेकर आ रहा है एक ऐसी कर्ण पिशाचिनी की कहानी जो एक साधक ने सिद्ध किया था आज से 30 साल पहले और आज वो जीवित है या नहीं किसी को भी उनके बारे में कुछ भी पता नहीं है। ये कहानी हमें भोपाल के किसी गांव में रह रहे कुछ लोगों ने बताई है कि कैसे किसी साधक ने उसे सिद्ध किया और वो कुछ समय के बाद गायब हो गए अपने ही घर से और उन्हें कोई भी ढूंढ नहीं पाया।
प्रति चीज को कोई भी व्यक्ति तभी पा सकता है जब कोई हमें कर्णपिशाचनी को सिद्ध करे तथा उसे सिद्ध करते समय उस साधक को डरना नहीं है तथा हमें अनुष्ठान को किसी भी स्थिति में पूरा करना होता है वरना वो कर्ण पिशाचनी उस साधक को मार भी सकती है.
चलो कहानी की तरफ बढ़ते हैं इस कहानी में साधक के नाम की जगह सिर्फ साधक ही इस्तेमाल करने वाला हुँ और उनके जीवन से जुड़ी हुई कुछ बातों को भी बताऊंगा कि क्यों उन्होंने कर्ण पिशाचनी को सिद्ध किया। तो चलिए पढ़ते हैं.
साधक भोपाल के एक छोटे से गांव में रहता है तथा उनकी उमर सिर्फ 23 की है तथा वो एक पढ़े लिखे किसान है एक दिन की बात है उनकी मां ने उनसे उनकी शादी की बात की तथा कहा कि बेटा अब तुम बड़े हो गए हो तुम्हें अब शादी कर लेनी चाहिए साधक ने अपनी मां को शादी के लिए हा कह दिया तथा एक अच्छी सी लड़की देखने को कहा। फिर साधक की माता ने उनके लिए लड़की को देखना शुरू किया और बहुत सारी लड़की देखी पर कोई भी साधक को अपनी लड़की देने के लिए तैयार नहीं हुआ क्योंकि साधक बहुत गरीब था उनके पास रहने के लिए अच्छा घर भी नहीं था जब भी कोई लड़की के रिस्तेदार साधक के लिए अपनी लड़की की बात करने के लिए आते हैं, निराश होकर जाना पड़ता है, इस बात से साधक दुखी और बहुत परेशान हो गए तथा उन्हें शहर जाकर कुछ पैसे कमाने की सोची वह मुंबई चले गए और अपने लिए एक फैक्ट्री में एक काम देखा जो उन्हें अच्छा पैसा दे सके।
और कमाना सुरु कर दिया और कुछ दिन कुछ पैसे कमाने के बाद वो वापस अपने गांव गए और अपना घर बनवाया और फिर से उनके लिए रिश्ते आने शुरू हुए पर इसी बिच साधक की मां की तबियत अचानक खराब हो गई थी उनकी मां का देहांत हो गया . इस बात से साधक परेशान हो गए कुछ दिन फिर वो अपने गांव में ही रहे पर मां की देहांत के बाद वो बुरी तरह से टूट गए थे तो फिर उन्होंने सोचा कि वापस से शहर जाकर कुछ पैसे कमाएंगे और फिर शादी करके अपनी गृहस्थी को बसाएंगे ताकि उनकी विरान जिंदगी फिर से आबाद हो जाए था कुछ दिन और रहने के बाद वो वापस मुंबई आने लगे। तथा अपने गांव से एक बस जोकी उनके रेलवे स्टेशन तक जाती थी उस में बैठ गए बस कुछ किलोमीटर चलने के बाद एक गांव के आगे रुकी और तभी एक सुंदर युक्ति उस बस में चढ़ती है !
जोकी देखने में कुंवारी सुंदर थी और आकर उनके पास बैठ जाती और उनके साथ रेलवे स्टेशन तक जाती है रेलवे स्टेशन पहुंचने तक साधक उस उक्ति पर पूरी तरह से मोहित हो जाता है और कोशिश करता है कि उससे कुछ बात कर ले क्योंकि दोनों को रेलवे स्टेशन तक साथ ही जाना था पर वो उक्ति उनके तरफ थोड़ा सा भी ध्यान नहीं दे रही थी और साधक के मन में बहुत इच्छा हो रही थी कि उससे कम से कम उसका नाम ही पूछ ले, लेकिन उस युक्ति के साधक की तरफ ध्यान न देने की वजह से अधुरी ही रह गई फिर तब तक उनका रेलवे स्टेशन आ गया था वो दोनों ही वहा उतर गए और अपने प्लेटफॉर्म पर जाकर अपनी ट्रेन का इंतजार करने लगे रेलवे स्टेशन बड़ा ना होने की वजह से वहा सिर्फ चार ही प्लेटफॉर्म थे और प्लेटफॉर्म नंबर 3 जिस पर मुंबई की ट्रेन आती है उस पर दोनों कुछ दुरी पर खड़े थे और ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे पर इस दौरान भी साधक उस व्यक्ति को बार-बार देखे जा रहे थे और कुछ देर देखने के बाद उस व्यक्ति ने उनकी तरफ देखा और कुछ देर देखने के बाद उस युक्ति ने अपना मुँह फेर लिया और इधर उधर देखने लगी तभी ट्रेन के आने का वक्त हो गया और ट्रेन के प्लेटफार्म पर आने की घोषणा हुई और उक्ति अपना सामान उठाने लगी और फिर कुछ ही पल में ट्रेन के प्लेटफार्म पर लग जाती है और साधक और वह अपने अपने कोच में चले जाते हैं और अपनी अपनी कोच के सीट पर बैठ जाते हैं और ट्रेन चल पड़ती है। साधक अपनी सीट पर बैठे बैठे ये ही सोचते रहते हैं कि इस लड़की से मेरी बात बन जाए तो मेरी जिंदगी अच्छी और खुशहाल हो जाएगी साधक रात होने पर उस लड़की के कोच में जाते हैं और उसे वहां देखते हैं वो अपनी सीट पर बैठी होती है। साधक दुर से उसे कुछ समय देखता है तथा फिर अपने कोच में अपनी सीट पर आकर बैठ जाते हैं और अपने मन की गहराई में खो जाते हैं और पता नहीं कब उनकी ऑख लग जाती है और साधक सो जाते हैं.!
फिर साधक की नींद सुबह खुलती है तो वह पहले उठते है, और उस लड़की के कोच कि तरफ जाते है उसे देखने के लिए, लेकिन लड़की वहा नहीं मिलती, लड़की पहले ही कोई स्टेशन पर उतर जाती है. और उस सीट पर कोई और ही बैठा होता है ये देख कर साधक परेशान हो जाते हैं और वापस आकर अपनी सीट पर बैठ जाते हैं और सोचने लगते हैं कि कैसे हाल ही के दिनों में उनकी जिंदगी किस तरह से पूरी बदल गई है और अपनी मां के बारे में सोचने लगते हैं उनकी माँ की इच्छा थी कि उनकी किसी लड़की से शादी हो जाए और एक अच्छा घर हो पर ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया और साधक की माँ की मृत्यु हो गई और यही रास्ते भर सोचते जब तक मुंबई नहीं पहूंच जाते वो मुंबई आ जाते हैं और वहा से टैक्सी में बैठ जाते हैं जिस घर में वो रहते थे वहा पहुंच जाते हैं और फिर से उस लड़की के बारे में सोचने लगते है। फिर भी ऐसे ही साधक के कुछ दिन अच्छे से गुजरते हैं और वो अपने काम पे जाने लगते हैं पर वो लड़की को भूल नहीं पा रहे थे जिसे भुलाने के लिए वो शराब पीना शुरू कर देते हैं फिर भी कोई फ़ायदा नहीं होता और उन्हे नसे की आदत लग जाती है और उन्हें और भी गलत चीज़ों की आदत लग जाती है वो वैश्याओ के घर भी जाने लगते हैं साधक की हालत इतनी खराब हो जाती है कि वो कमाना भी छोड़ देते हैं और नहीं तो वो हर वक्त सिर्फ नसे की हालत में घर पर पड़े रहते हैं जिसके कारण किराया ना देने की वजह से उनको वो किराय का मकान छोडना पड़ता है और वो रास्ते पर रहने लगते हैं उनका जीवन सैली इतनी खराब हो जाती है कि उनको भीख भी मांगनी पड़ती है सादक भीख मांगकर अपने लिए कुछ खाना और शराब खरीद कर गुजारा करते हैं और ऐसे ही कुछ महीने बीत जाते हैं कई बार तो कुछ लोग उन्हें चोर समझ कर उन पर हाथ भी उठा देते हैं। और साधक इसी तरह से अपना जीवन सड़क पर गुजार रहे होते है। कि तभी एक दिन कुछ अघोरियों का एक समुह वहां से गुजर रहा होता है तो वो अघोरियों का समुह वहा बैठ जाता है तो जिनसे एक अघोरी अपने चिलम से कुछ पी रहा होता है होता है तो साधक उस अघोरी से वो चीज पीने के लिए मांगता है और वो अघोरी उसे दे देता है.
अघोरी उस साधक से पूछता है कि तुम ऐसा जीवन क्यों व्यतीत कर रहे हो तो साधक उस अघोरी को सब कुछ बताता है कि कैसे उसका जीवन अचानक से बदल गया ये सब सुन कर अघोरी साधक को अपने साथ चलने को कहता है कि मेरे साथ चलो मैं तुम्हें वो सब चीज़ दिलवा दूंगा जो तुम चाहते हो। ये सुन कर साधक को विश्वास नहीं होता उन्हें लगता है कि अघोरी झूठ बोल रहा है परन्तु साधक उन्हें समझता है कि जिस दुनिया में अघोरी रहते हैं वाहा उनको सब कुछ मिलता है जो इस दुनिया में नहीं मिलता तथा अपने साथ चलने के लिए फिर से समझता है कि मैं तुम्हें इससे भी ज्यादा दिलवा सकता हूं और फिर साधक मान जाता हूं और अघोरी के साथ चला जाता हूं.पर वो अघोरी उन्हें कुछ नहीं बताते कि वो सब सुख साधक को कैसे मिलेंगे जो वो चाहते हैं साधक बस उन सब अघोरियो को संसार में सिर्फ तपस्या करते हुए देखते हैं हर रोज भस्म लगाते हुए देखते हैं और बस पूजा पाठ ही देखने को मिलता है साधक निरास हो जाते हैं और वह अघोरी से कहते हैं कि जब तुम सब के पास ही कुछ नहीं है तो तुम मुझे कैसे कुछ दे सकते हो तो वह अघोरी साधक को एक दूसरे अघोरी के पास जाने को कहता है जो कि बहुत बुड्ढे होते हैं और उनके शिष्य बनने को कहते है.
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इस कहानी में बस इतना ही. बाकी कहानियाँ मैं अपने सभी पाठकों के लिए जल्द ही प्रकाशित करूँगा। आप जल्द ही भाग-2 पढ़ेंगे!
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