कर्ण पिशाचिनी या उर्वशी- एक सच्ची कहानी Part-2
Crazyhorrormint
फिर से लेकर आया है एक सच्ची कहानी जो कि एक कर्ण पिशाचनी
पर आधारित अगर आपने हमारी पिछली कहानी कर्ण पिशाचिनी या उर्वशी- एक सच्ची कहानी
को पढ़ा होगा तो आपको कर्ण पिशाचनी
के बारे मे अवश्य पता चला गया होगा आज के इस कहानी के
भाग मे पढ़े कि कैसे उर्वशी के बारे मे कुछ रहसमयी तथ्य का पता चलता है
अवश्य पढ़े कैसे कर्ण पिशाचनी की साधना करके उसे हासिल किया जाता है और वह किस प्रकार साधको की
मदद करती है । यह कहानी भी एक विचित्र कर्ण पिशाचिनी पर ही आधारित है । चलिए अब कहानी पर आते हैं ।
अब:--
दीप सिंह इस नजारे को देखने के बाद कुछ भी समझ नही पा रहा थे कि अचानक इस जंगल में ऐसी कौन सी चीज आ गयी है जो लोगों को मार रही है । दीप सिंह कुछ बोलते उससे पहले उन्हे उनके सीनियर अधिकारी का आडियों मेसेज मिलता है कि कल की किसी भी हालत में पुरे जंगल का फिर से जाएजा लिया जाए और उस जीव को फिर से ढुढ कर उसे सुधार के लिए भेजा जाए परंतु तभी दया अपने सिनियर अधिकारी को बताते हैं कि हमारे कुछ गार्डस ने एक और व्यक्ति की लाश को बरामद किया है जोकि सिर्फ एक ही चीज चिल्ला रहा था कि यहाँ से चले जाओ वो वापस आ गई है ।
यह विवरण को सुनकर अधिकारी कहते हैं कि उसकी लाश को पोस्ट मार्टम के लिए भेज दो तथा पुरी टीम को लेकर सुबह ही जंगल में दाखिल हो जाओ । दया सिंह समक्ष जाते हैं कि जंगल के अंदर कोई बहुत घातक और खुंखार जीव है जिसे पकड़ना आसान नहीं होगा। तभी वह साधु वहाँ चेक पोस्ट पर आ गया और पागलों की तरफ दया सिंह को पकड़ कर चिल्लाने लगा कि " आ गई है उसे खुन चाहिए खुन दो वरना वो सब को मार देगी कोई नही " । सिफल साधु को दया सिंह से छुड़ाते हुए बोलता है "पालग बुढे छोड सर को " परन्तु साधु ने दया का हाथ बहुत ही मजबुती से पकड़ रखा था सिफल ने जैसे तैसे साधु का हाथ छुडाया और फिर दया सिंह को मोटर साइकिल पर सवार होने को कहा दोनों लोग मोटर साइकिल पर बैठकर वापस से अपने क्वाटर मे आ गये और दया सिंह अपने कमरे में सोने चले गए जब दया सिंह सो गए तब उन्हे 3 बजे एक विचित्र सपना आया जिसमे वो किसी स्त्री के कहने पर एक बुढ़े व्यक्ति को गोली से मारकर हत्या कर दी है और वह जमीन पर घुटनो के बल बैठ कर पश्चाताप कर रहे हैं ।
यह सपना देखकर दया सिंह की नींद खुल गई और उन्हें ऐसा लगा जैसे कोई उनके कमरे के बाहर दरवाजे पर खड़ा है दया अपनी पिस्तौल उठा कर एक हाथ से दरवाजा खोला पर वहाँ उन्हे कोई भी नहीं मिला । दया सिंह गलियारे मे जाकर भी देखते हैं परन्तु वहाँ भी कोई नहीं था । दया वापस अपने कमरे में आ गए और सो गए । सुबह सिफल की आवाज सुनकर दया की नींद खुली तो देखा 6:30 हो गया था । वह कमरे से बाहर आए । और सिफल को इंतजार करने को बोला थोड़ी ही देर बाद दया अपनी युनिफार्म पहनकर बाहर आ गये। और दोनो मोटर साइकिल पर सवार होकर वन अधिकारी कार्यालय पहुंच गए।
वहाँ पहले ही एक स्पेशल टीम उनका इतंजार कर रही थी सब ने स्पेशल टीम के साथ जंगल की तलाशी के लिए जीप और ट्रक मे बैठ कर निकल गये मात्र 20 मिनट मे ही पुरी टीम जंगल में घुस गए और एक जगह पर जाकर रुके जहाँ से बहुत सारी पगडंडी और छोटे छोटे रास्ते निकल रही थी । सभी लोग छोटे छोटे गुट में बट कर पुरे जंगल में फैल गये और उस जीव को तलाश करना शुरू किया पुरे टीम ने जंगल के सभी कोने, गुफाएं, ढलान और नदी तालाब सब कुछ ढुढ़ लिया परन्तु वहाँ उन्हे कुछ भी नहीं मिला ।
तभी एक टीम ने सबको एक ऑडियो मेसेज दिया तथा जंगल में एक जगह पर बुलाया। सभी टीम और स्पेशल टीम के ऑफिसर उस जगह पर पहुंचे वह जगह जंगल के बाई तरफ एक छोटे से तालाब के पास था। जो बडे बडे पेड़ो और झाड़ियों से घिरा हुआ था । वह जगह देखने मे इतनी डरावनी थी कि उसका कोई जवाब नहीं था वही तालाब के पास एक छोटा सा पुराना मंदिर था जिसकी हालत बहुत खराब थी मंदिर को बहुत से पेड़ों और झाड़ियों ने घेर लिया था। तथा मंदिर पुरी तरह से वीरान तथा भयावह दिख रहा था ।
दया सिंह जब वहा पहुंचते हैं तो वो देखते हैं कि सभी लोग किसी चीज को घेर कर खड़े हैं जब वो पास जाते हैं तो उन्हे एक विचित्र सी चीज दिखती हैं किसी ने एक लाल रंग का गोला बनाकर उसके अंदर किसी बकरे की बली दे दी है । और आस पास में किसी ने मारन क्रिया को किया है जब दया पास के मंदिर में जाते है तो वहाँ पर भी उन्हें सिंदुर गुड़िया कुछ मटके चुड़िया जैसी चीजे मिलती है । तभी सिफल मंदिर के अंदर आता है और कहता है कि किसी ने यहाँ काला जादू किया है इसलिए शायद यह सब घटना इस जंगल मे शुरू हो गई है दया सिंह इन बातों को सुनकर कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं दी वह दोनो लोग मंदिर से बाहर निकल आए और सभी को यह बताया कि यहां पर बहुत भयावह काला जादू किया गया है और भी आफिसर किसी भी चीज को ना छुये तथा यहां से जल्द से जल्द निकल जाए
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तरकरीबन साम के 4 बज चुके थे अब जंगल का कोई भी ऐसा कोना नही था जिसे पूरी टीम ने ना देखा हो परंतु उन्हें काले जादू के अलावा कुछ भी सबुत नहीं मिले तभी दया सिंह एक बार पीछे पलटकर मंदिर की तरफ देखते हैं और उन्हें मंदिर के दरवाजे पर एक काला साया नजर आता है दया सिंह उस काले साये को देखकर बोलते हैं पीछे देखो मंदिर में कोई है सभी लोग अपनी बंदुको को हाथ मे लेकर मंदिर की घेर लेते हैं और तीन लोग मंदिर के अंदर प्रवेश कर गये परंतु उन्हें वहाँ अंधेरे के सिवा कुछ भी नहीं मिला। दया सिंह अब समझ गये थे कि जगह पर कोई भयानक बुरी आत्मा है जो लोगों को जंगल में आने पर मार रही हैं । पुरी टीम अपनी गाड़ी मे बैठकर वापस वन अधिकारी कार्यालय आ जाती है ।
दया सिंह और सिफल भी अपनी डयुटी को खत्म करके वापस साम को अपने क्वाटर मे लौट आए । परंतु अब जब भी दया सिंह रात को सोते उन्हे सपने में वो काला साया जो मंदिर में खड़ी थी वो नजर आने लगी उन्हे ऐसा लगने लगा जैसे वो काला साया बार बार उन्हे अपनी तरफ बुला रही है । दया सिंह अब रातों को सो भी नहीं पा रहे थे उन्हे कुछ भी समझ नही आ रहा था । कुछ दिन ऐसे ही गुजरे।
पर एक रात उन्हें सपने मे एक भयानक सा चेहरा नजर आया जो हल्का काले और नीले रंग का था उसकी आंखें लाल अंगारे की तरह दहक रही थी और वो किसी शैतानी राक्षसी से कम नहीं था उसके बाल काले और घुंघराले थे और वो दया के पास आ गई । तभी दया चीखता हुए जग गये उन्होंने पास की दीवार पर लगी घड़ी पर देखा रात के 3 बज रहे थे । दया उठकर पानी के लिए बाहर टंकी के पास गये तभी उन्हे कुछ ऐसा लगा। जैसे उन्हे कोई अदृश्य चीज कर चली गई है । उन्होंने हैरानी से अपने चारो तरफ देखा पर कुछ भी नहीं था सब कुछ चाँद की रोशनी मे सामान्य नजर आया। पर अब चीजे दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही थी उन्हें रोज अलग अलग प्रकार के सपने आने लगे उनका काम मे मन नहीं लग रहा था कि सिफल उनके पास आकर पुछता है कि क्या बात है तुम आज कल उदास और थके हुए लगने लगे हो । यह बात सुनकर दया सिफल को अपने रातो के सपने के बारे मे सब कुछ बता दिया यह सुनकर सिफल हंसते हुए कहता है लगता है तुम्हारे उपर किसी चुड़ैल का असर हो गया है
यह सुनकर दया सिंह बिलकुल स्तब्ध हो गए और फिर वो साम को अपनी ड्यूटी के बाद सिफल के साथ मोटर साइकिल से घर जा रहे थे कि तभी अचानक मोटर साइकिल का टायर फट गया और दोनो लोग गिर पड़े और दया सिंह के पैर मे गंभीर चोट आ गई और सिफल को भी हाथो और पैरो मे चोट लगी सिफल जैसे तैसे उठकर दया सिंह को उठाता है परन्तु दया के पैर में बहुत तेज दर्द शुरू हो गया दया ने सिफल को कहा मैं अब चल नही सकता मेरे पैरो में चोट आ गई है तुम मोटर साइकिल को यहीं छोड दो और वापस कार्यालय जाकर जीप ले आयो ताकि हम अस्पताल जा सके परंतु सिफल उन्हे छोड़ कर जाना नही चाहता था। परन्तु कोई उपाय ना निकलने के बाद उसे हार मानकर जाना पड़ा । दया सिंह वही कच्ची रोड के किनारे बैठ कर सिफल का इंतजार करने लगे अब सूरज पूरी तरह से छीप चुका था हल्का अंधेरा शुरू हो गया आसमान मे बादल घिर गए और बारिश की हलकी बुंदे गिरने लगी। अब दया सिंह के लिए यह समय उनके जीवन का सबसे बुरा समय लगा जहा वो बारिश मे एक लाचार की तरह सड़क के किनारे पड़े हुए थे जहाँ दुर दुर तक कोई भी व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था
तभी वो पागल साधु उन्हे जंगल की तरफ से आते हुए दिखाई दिया दया सिंह उसे देखकर मदद के लिए चिल्लाने लगे और तभी वो साधु उनके पास आया और पुछा तुम इतनी बारिश मे यहाँ क्या कर रहे हो और तुम्हारी दो पहिया ऐसे सड़क के किनारे क्यु गिरी हुई है । दया सिंह ने बोला हमारा मोटर साइकिल का पहिया फट गया है और मेरे पैर मे चोर लग गई है मुझसे चला नही जा रहा है कृप्या मेरी मदद करो साधु ने दया सिंह की हालत को देखकर अपना हाथ बढाया और दया सिह को उठाकर अपने कंधे से सहारा देकर चलने लगा तभी साधु ने बोला गांव यहा से ज्यादा दुर है तुम एक काम करो मेरे घर चलो वो यहीं पास में हैं गांव के बाहर मंदिर के पीछे दया सिंह ने बोला ठीक है दया सिंह दर्द से चिल्लाते हुए चलने लगे और कुछ ही पल में वो मंदिर तक पहुंच गए और फिर साधु ने उनसे कहा बस पीछे ही मेरा घर है दया दर्द से चिल्ला रहे थे परन्तु बहुत प्रयास के बाद वो साधु के घर मे प्रवेश कर गये। साधु ने उन्हें एक खटिया पर लेटा दिया और घर के सारे लालटेन को जला दिया ताकि पूरे घर में रोशनी हो सके बाहर अब घनघोर अंधेरा छा गया गया था। बारिश जोर से हो रही थी दया सिंह ने कहा मेरा दोस्त मदद के लिए पुलिस चौकी पर गया है वो आता ही होगा । तभी साधु ने कहा वो अब इतनी जल्दी नही आ पाएगा क्युकि बारिश बहुत तेज है इससे यहाँ की सडके बहुत खराब हो जाती है । दया सिंह ने घर में चारों ओर देखा हर तरफ उन्हें कुछ अजीब चीजे दिखी मटके, गुलाल, सिंदुर, लकड़ी की गुडिया, जानवरों के छाल, खुन के धब्बे, बहुत सारी जडी बुटिया और काला जादू करने का सामान ।
दया सिंह को अब समझ में आ गया कि साधु ही वह व्यक्ति था जिसने जगल में उस पुराने मंदिर के पास सारी काली प्रक्रिया की थी। साधु दया के पास आता है और उनके पैरो को छु कर चेक करता है कि तभी दया सिह के मुंह से एक दर्द भरी चीख निकल पड़ी । साधु दया को कहता है कि तुम्हारे दाये पैर की हडडी पूरी तरह से टुट चुकी है । दया कुछ भी नहीं बोलते बस दर्द से तडप रहे थे और कुछ ही पल बाद साधु एक जड़ी बूटियों की लेप बनाकर लाता है और टुटी हुई जगह पर लगा कर कुछ मंत्र बोलकर पैरो पर फुक देते हैं और टुटी हुई जगह पर एक साफ कपड़े की पटटी कर देता है । कुछ ही पल बाद दया को महसूस होता है कि उसका दर्द कम हो गया है वो लेटे हुए ही साधु से बात करते हैं ।
दया पुछते है तुम्हे लोग पागल क्यु कहते हैं ?
साधु इसका कोई भी जवाब नहीं देता। दया सिंह फिर से पुछता है तुमने ही जंगल के मंदिर मे वो जानवर की बली दी थी। और वो काला जादू किया था।
साधु इसका भी कोई जवाब नहीं देता फिर दया उसे कहते हैं मुझे पता है वो तुम्ने ही किया है क्युकि तुम्हारे घर मे यह सब चीज़ें देखकर तो यही लगता है कि तुमने ही उन दोनों को मारा है। कल पुलिस यहाँ आयेगी और तुम्हे पुछताछ के लिए लेकर जाएगी । और अगर तुमने मारा होगा तो फिर तुम्हें सजा मिलेगी । यह सुनकर साधु चिलाकर बोलता है मैंने किसी को नहीं मारा उसने मारा है ।
दया सवालिया नजर से पुछते है किसने ?
साधु कहता है उर्वशी ।
दया कहते हैं कौन है यह उर्वशी
साधु कहता है आज से 40 वर्ष पहले इस गांव में एक अदभुत कन्या का जन्म हुआ था। जब वह 10 वर्ष की थी तब से वह इस मंदिर में रोज पुजा करने आया करती थी वह माता शैलपुत्री की भक्त थी और उसका रुप भी किसी माता के रूप जैसा ही था। वह रोज मेरे पास आती थी उसने मुझसे सारी तंत्र विद्या सीखी और 14 वर्ष की आयु में ही उसने बहुत सारी सिद्धियां प्राप्त कर ली थी। पर एक दिन गांव में विजय दशमी की पुजा रखी गई उस पुजा का दायित्व उसे दिया गया था । गाँव के सभी लोग उस पुजा में आये, गाव के आस पास के गांव वाले भी उस पुजा मे शामिल हुए थे और वहाँ पर इस गांव के जमींदार का पुरा परिवार भी आया था जिसमे जमींदार का बडा बेटा भुवन भी था वह उर्वशी को पुजा और हवन करता देख उसकी तरफ मोहित हो गया । भुवन एक धुर्त और वैहसी किस्म का आदमी था वह दिन भर शराब के नशे में लड़कियो को छेडता और जंगल में उनके साथ कुकर्म करने की भी कोशिश करता था। उसके कारण इस गाव की सारी लडकिया और नवयुवतीया उससे दूरी बनाए रखती थी । परन्तु जमीदार का बेटा होने के कारण कोई उसके खिलाफ कुछ नहीं बोल पाता था । और जो भी उसके खिलाफ बोलता वह उसे अपने पाले हुए लोगो से पीटवा दिया करता था। और उन्हें बहुत परेशान करता था। भुवन से सभी गांव के लोग डरते थे।
उस दिन पुजा मे भी यही हुआ पुजा खत्म होने के बाद सभी लोग दशहरा का आंनद ले रहे थे और तभी भुवन ने मौका पाकर उर्वशी के हाथ को पकड़ लिया उर्वशी ने भुवन की तरफ एक झलक देखा और उसके गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मारा । थप्पड़ के पड़ते ही सभी लोग सतब्ध होकर भुवन को देखने लगे । भुवन को पहली बार इतनी बड़ी बेइज्जती महसूस हुई। उससे रहा नहीं गया और उसने बदला लेने के लिए उर्वशी के स्तनो पर हाथ रख दिया और उसकी कमर पकड़कर अपनी तरफ खीच लिया । उर्वशी ने भुवन को पुरे गांव वालो के सामने जोरदार कई थप्पड़ मारे । और भुवन को धक्का देकर भाग गयी। भुवन धक्का खाकर हवन कुंड के किनारे पर गिरा परन्तु उसका बाया हाथ हवन कुंड के आग की चपेट में आने से जल गया। भुवन दर्द से चिल्लानें लगा पर कोई भी उसकी मदद करने के लिए नही आया ।
भुवन इस अपमान को सहन नहीं कर पाया और वहॉ से चला गया । भुवन अब उर्वशी से अपने अपमान का बदला लेने के लिए पागल हो चुका था उसने उर्वशी को हर तरह से हासिल करने की कोशिश की उसने उर्वशी के घर के लोगो को पैसो का लालच दिया ताकि वो उर्वशी की शादी भुवन से करवा दे परन्तु उर्वशी ने उसे भी मना कर दिया । उर्वशी जितना भुवन को ना कह रही थी भुवन उतना ही उसे पाने के लिए तड़प रहा था । भुवन की वासना की आग दिन प्रति दिन उर्वशी के लिए बढते जा रही थी और एक दिन वो हुआ जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं कि थी उर्वशी एक दिन जंगल मे वन देवी के मंदिर में पूजा कर रही थी कि तभी भुवन और उसके कुछ आदमी वहा पहुंचे उर्वशी पूजा में लीन थी कि भूवन उर्वशी के पीछे जाकर खड़ा हो गया । उर्वशी ने अपनी आँखे खोली और पीछे मुड़कर देखा तो उसे भुवन दिखाई दिया। जिसकी ऑखो मे सिर्फ उसे हवस दिखाई दी उर्वशी अब समझ गई थी कि भुवन यहाँ क्यू आया है उर्वशी तेज तेज चिल्लाने लगी पर उस जगल मे कोई भी नहीं था जो उसकी मदद के लिए आ सके । उर्वशी ने वहाँ से भागने की कोशिश की पर भुवन के आदमियों ने उसे पकड़ लिया और भुवन की तरफ फेक दिया । भुवन उर्वशी को पकड़कर खींचता हुआ वन देवी के मंदिर के पीछे ले गया! उर्वशी रोते हुए बोली की भुवन छोड़ दे मुझे मैने तेरा क्या बिगाड़ा है मुझे जाने दे परन्तु भुवन हवस की आग में पागल हो गया था उसने उर्वशी के कपड़े फाड़ दिये और उसे पुरी तरह से नग्न कर दिया उर्वशी चितलाती रही और उसे छोड़ देने के लिए कहा पर भुवन ने उसे नही छोड़ा और उर्वशी को तङपाकर उसका ब्लात्कार किया। भुवन एक वैहसी भूखे दरिंदे की तरह उर्वशी का तब तक ब्लात्कार किया जब तक उसने अपने प्राण नहीं त्याग दिये । उर्वशी रोती हुई अपने प्राणों को त्याग चुकी थी परन्तु भुवन को इस बात का कोई अहसास नहीं हुआ । थोड़ी देर बाद भुवन को समझ आ गया था कि अब उर्वशी मर चुकी है भुवन उर्वशी के मृत शरीर को छोड़ कर खड़ा हुआ और अपने आदमियों को उसका नगन मृत शरीर को पास के तालाब मे डालने को बोल दिया ।
भुवन के आदमियों ने उर्वशी के शरीर को तालाब में डाल कर चले गए । सभी गांव वालों ने उर्वशी को हर जगह पर ढुढ़ा पर वह कही भी नहीं मिली और उसके कुछ ही दिन बाद उसका मृत शरीर कुछ गांवों के युवा बच्चो को तालाब में मिला ।
दया सिंह यह सुनकर भावुक मन से पुछते है कि वह वापस कैसे आ गई । साधु उसे बताते हैं कि वह मर नहीं सकती उसकी आत्मा को मैने वश मे कर लिया था जब मुझे ये पता चला कि वह मर गई थी। उसकी आत्मा जमीदार के पुरे परिवार वालो को मारना चाहती है । और अब उर्वशी की कोई भी मुक्ति नहीं होगी क्युकि मैने अपने तंत्र मंत्र और साधना से उसे एक कर्ण पिशाचनी का स्थान दिला दिया है । और अब उसे कोई भी शक्ति नहीं मार सकती। और यह बोल कर वह जोर जोर से हंसने लगा । और बोलने लगा अब कोई भी नहीं बचेगा। उस घर में ।
आज के इस कहानी का भाग यहीं पर समाप्त होता है इसके अगले भाग मे अवश्य पढ़े कि कैसे उर्वशी के बारे मे कुछ रहसमयी तथ्य का पता चलता है इस कहानी के सभी भाग जल्द ही प्रसारित किये जाएगे ।
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