कर्ण पिशाचिनी-एक अनोखी कहानी Part-3
आज crazyhorrormint लेकर आ रहा है एक ऐसी कर्ण पिशाचिनी की कहानी जो एक साधक ने सिद्ध किया था आज से 30 साल पहले और आज वो जीवित है या नहीं किसी को भी उनके बारे में कुछ भी पता नहीं है। ये कहानी हमें भोपाल के किसी गांव में रह रहे कुछ लोगों ने बताई है कि कैसे किसी साधक ने उसे सिद्ध किया और वो कुछ समय के बाद गायब हो गए अपने ही घर से और उन्हें कोई भी ढूंढ नहीं पाया।
कहानियों के पिछले भाग में हमने पढ़ा था कि ट्रेन से आते समय साधक के पास कोई टिकट या पैसे नहीं थे, लेकिन कर्ण पिशाचिनी के कारण उसके बैग में टिकट और पैसे आ गए जो वास्तव में एक चमत्कार है, अब हम तीसरा भाग पढ़ेंगे।
साधक अपने सफर में ये पूरी तरह से जान जाते हैं कि ये कर्ण पिसाचनी है जो अब उसके साथ है पर वो अभी किसी को अपने वास्तविक रूप में दिखायी नहीं दे रही है पर वो उनकी अप्रत्यक्ष रूप से मदद कर रही है वो अपने ट्रेन के सफर को पूरा करके अपने घर पहुंच जाते हैं.जब वह अपने गांव में अंदर जाते है तो गांव के लोग उन्हें पहचान नहीं पाते क्योंकि वह एक योगी के रूप में होते हैं और गांव वालों को लगता है कि कोई योगी उनके गांव आया है. जब वो अपने घर पहुचते हा तो वो देखते है कि जिस जगह पर उनका घर था अब वो नहीं है बल्कि उसकी जगह पर कोई दूसरा परिवार अपना घर बना के रह रहा है वो ये देख कर पूरी तरह से उदास हो जाते हैं कि उनकी जगह कुछ लोगो द्वारा हड़प ली गई है उनको कुछ समझ नहीं आता और वो उस घर में रह रहे हैं एक स्त्री से कहते हैं कि यहां मेरा घर था वो कहां गया और आप लोग कोन हो. तभी उस घर से एक दूसरा व्यक्ति बाहर आता है जो एक अधेड़ उमर का था वो कहता है मैंने इस गांव के लोगो की जमीन को खरीद लिया है और इस गांव का अधिकार प्राप्त कर लिया है.तभी साधक पूछते हैं कि मेरे घर को किसने बेचा तो वो व्यक्ति कहता है कि ये जगह बहुत समय से खाली थी यहां कोई भी नहीं रह रहा था तो मैंने इस जगह पर अपना घर बनवा दिया ये सुन कर साधक को गुस्सा आ जाता है और वो उस व्यक्ति को वो जगह खाली करने को कहते है जिसे सुनाकर वो व्यक्ति साधक को गलिया देता है और उन्हें मारता है. अब साधक समझ जाता है कि अब वो वहां नहीं रह सकता वो सीधे अपने गांव के मुखिया के पास जाता है और ये सब वाक्या उन्हें बताता है मुखिया उन्हें पहचान जाता है और उन्हें बताता है कि ये व्यक्ति बहुत पैसे वाला है उसकी पहुंच बहुत ऊपर तक है उसने इस गांव के लोगो को डराकर उनकी जमीन सस्ते दामो में खरीदी है और हड़पी है.अब साधक बहुत निराश हो जाता है और समझ जाता है कि अब इससे अपनी जमीन वापस लेना आसान नहीं है.अब साम होने वाली होती है साधक ने कुछ भी खाया पिया नहीं होता और वो भूख से परेशान होकर पहले गांव के एक दुकान पर जाते हैं और कुछ खाने पीने की वास्तु को लेकर अपने गांव के जंगल में चले जाते हैं और खा पीकर वही अपनी तंत्र साधना के लिए आसन लगाते हैं तभी उन्हें एक स्त्री का स्वरूप दिखाई देता है और साधक सोचने लगते हैं कि रात को कोन सी स्त्री यहां आ रही जोकी साधक के तरफ ही आ रही थी.और वो स्त्री इतनी तीव्र गति से आ रही थी कि साधक को कुछ समझ नहीं आ रहा था साधक को कुछ असामान्य सा लग रहा था तभी वो स्त्री उनके निकट आ जाती है और बहुत पास आकर खड़ी हो जाती है.साधक उस स्त्री को देखता है और फिर साधक को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं होता
साधक कुछ पल के लिए आश्चची से खो जाते हैं ये कोई और स्त्री नहीं बल्कि वही होती जो उन्हें मुंबई जाते वक्त बस में मिली थी और उनके साथ एक ही ट्रेन में बैठकर कुछ दुर तक गई थी.अपनी मनपसंद लड़की को पास में देखकर उसे कुछ समझ नहीं आता और वह एकदम हैरान हो जाता है और बस उसे देखता ही रह जाता है, तभी अचानक से वह लड़की उसके पास आ जाती है.
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फिर साधक उन स्त्री से पूछता है कि वह कौन है तब वह स्त्री उन्हें कहती है कि मैं आपकी पत्नी हूं। साधक को फिर से विश्वास नही होता है कि ये कैसे हो सकता है उनकी तो अभी तक किसी से शादी ही नहीं हुई है तो वह स्त्री उन्हें कहती है कि आपने तो मुझे सिद्ध किया है अपनी पत्नी के रूप में अब साधक समझ जाते हैं कि ये कर्ण पिशाचनी है जो उस लड़की के रूप में आई है साधक बहुत खुश हो जाता है कि अब कहा जाए उन्हें सब कुछ मिल चुका है जो उन्हें चाहिए था.साधक उस स्त्री से पूछता है कि वह उस स्त्री के रूप में क्यों आई है, जो उन्हें ट्रेन में मिली थी तो वह कर्ण पिशाचनी साधक को कहती है क्योंकि तुम्हें वह बहुत पसंद है इसलिए मैंने उसका रूप लिया है बस तुम्हारे लिए.
फिर वो कर्ण पिशाचनी उनके साधक के सिर पर हाथ रखती है और उसे सहलाने लगती है और साधक के शरीर पर चुम्बन करके उनके काम को बढ़ाने लगती है.वो साधक के पुरे शरीर से कपड़े हटाने लगती है और साधक को नग्गन कर देती है और फिर उनके ऊपर बैठ जाती है और उनके शरीर को चाटने लगती है।
साधक समझ जाता है कि अभी पिसाचनी को काम वासना सवार है अगर वो इसे रोक देंगे तो वो नाराज भी हो सकती है. साधक भी काम वासना का आनंद लेते हैं पिशाचनी साधक के नगन शरीर को चूमने के बाद खुद भी धीरे-धीरे नगन होने लगता है और साधक उस कर्ण पिशाचनी के शरीर को देख कर मन मुग्ध हो जाता है क्योंकि पिशाचनी का शरीर एक दम नौजवान युक्ति की तरह था जो अभी अभी जवान हुई थी। इधर साधक भी काम वासना में खो जाता है और कर्ण पिशाचनी के साथ पूरी तरह से संभोग में खो जाते है कर्ण पिशाचनी भी साधक को तीव्र तरह से संभोग का आनंद दे रही थी.दोनों एक लम्बी अवधि के सम्भोग के बाद एक दूसरे को संतुष्ट करके सो जाते हैं. जब सुबह साधक की नींद खुलती है तो वो देखता है कि वो कर्ण पिसाचनी गायब है.
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मेरे सभी प्रिय पाठको, इस कहानी में जो आपने पढ़ा, यह सब सच है। लेकिन इस कहानी में बस इतना ही, कृपया कहानियों का अगला भाग पढ़ें!
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asdas
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