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लाल हवेली- ब्रह्मा राक्षस का घर

 

नोट: इस कहानी के पात्रो के नामो को बदल दिया गया है और कुछ कालपनिक तथ्यो को भी इसमे सामिल किया गया है और यह कहानी सिर्फ मनोरंजन के वास्तिवकता की दर्शाता है  

 

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यह कहानी बिहार की गोपालगंज की है। जहा 1987 मे एक हवेली हुआ करती थी जिसका नाम लाल घर था जोकि एक हवेली थी उस घर मे एक ब्राह्मण का परिवार रहता था जोकि 1972 मे वही उस लाल घर मे रहते थे पर फिर किसी निजी कारणों की वजह से उस घर की छोड़ कर कही किसी दूसरी स्थान पर चले गए पर उस घर का एक सदस्य चिंतामणी दुबे उसी हवेली में रुक गया चिंतामणी एक विद्वांन ब्राह्मण था जिसकी संस्कृत भाषा पर अच्छी पकड़ थी और उसे वेदों और पुराणों की भी अच्छी जानकारी थी चिंतामणी लोगो की शादी मे पुरोहित का कार्य संभालता था और हवन यज्ञ के सभी अनुष्ठान करवाकर अपना गुजारा चलाता था और उस हवेली की देखभाल करता था पर जैसा कि सभी लोगो को पता है कि 19वीं सदी में बिहार मे कई नक्सली संगठन हुआ करते थे  

उन्ही में से किसी नकस्ली सगठन ने एक रात हवेली में घुस कर चिंतामणी दुबे को मार डाला और कुछ किमती सामान को चुरा कर भाग गए चिंतामणी की लाश उस लाल घर मे 4 दिनों तक पड़ी रही जब लोगो ने यह देखा कि चिंतामणी कुछ दिनों से घर से बाहर नही दिखा तो गांव के एक व्यक्ति ने लाल घर मे चिंतामणी से मिलने गया जब व्यक्ति घर में घुसा तो उसे बहुत ही बुरी तीव्र गंध आई जो चिंतामणी की लाश की थी और फिर उसने चिंतामणी की मृत शरीर को जमीन पर पड़ा देखा वह चिंतामणी के पास गया और चिंतामणी के मृत शरीर को देखकर  चिल्लाने लगा और अगल बगल के सभी लोगो को इकठठा कर लिया सभी गांव के लोगों ने देखा कि चिंतामणी मरा हुआ है और उसके शरीर से बुरी गंध रही है और हवेली से कुछ मुल्यवान वस्तुएं गायब है। 

गांव के लोगों ने चिंतामणी के घर वालो को संदेश भिजवाया था जो कही दूसरे शहर में रह रहे थे ताकि वो चिंतामणी के अंतिम संस्कार मे शामिल हो सके पर उनके समय पर ना आने की वजह से गाव के लोगो ने ही चिंतामणी का अंतिम संस्कार कर दिया  

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कुछ दिन ऐसे ही गुजर गये हवेली पूरी तरह खाली हो चुकी थी वहा पर कोई परिंदा भी नही रह रहा था हवेली बिलकुल सुनसान हो चुकी थी और एक खंडहर मे बदल गयी जिसमे सिर्फ गांव के कुत्ते रहते थे। 

दिन यू ही गुजरते गये और करीब 2 साल बाद एक रात को अचानक ही उस हवेली से अजीबो गरीब आवाज आने लगी और वह पूरी हवेली रोशनी से भर गई जैसे किसी ने हवेली के अंदर बहुत सारी तेज रोशनीयों वाली कई लाईटो को लगा दिया हो तेज रोशनी को देखकर आस पास के कई लोग हवेली के पास आए ताकि वह जान सकें की हवेली के अंदर अचानक से इतनी सारी रोशनी कैसे प्रज्वलित हो गई है  

सभी लोग हवेली  के बाहर इक्कठा हो गए और हवेली के अंदर जाने का निशचय किया जब सभी लोग उस रोशनी को देखने के लिए लाल हवेली के अंदर गए तभी उन्हे मंद मंद स्वर मे किसी के मंत्र उच्चारण करने की आवाज आई मंत्रो की आवाज हवेली के सभी दिशाओं से रही थी सभी लोग मंत्रो  को एक : मे उच्चारित होता हुआ देखकर थोडे से भयभीत हो गए क्युकि उस हवेली मे कोई भी मनुष्य दिखाई नही दे रहा था जो मंत्रो को पढ़ रहा हो  

तभी अचानक  से रोशनी एक दम से कही गायब हो गई हर तरफ बस घनघोर अंधेरा हो गया और मंत्र उच्चारण भी रुक गया लाल हवेली के अंदर जैसे घनघोर अंधेरे मे कोई सनाटा पसर गया हो तभी सभी लोग आपस मे बात करने लगे कि अचानक से रोशनी कहा गायब हो गई और मंत्र उच्चारण भी क्यु रुक गया और कौन है इस सुनसान हवेली के अंदर जो ये सभी गतिविधियो को कर रहा है।

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सभी लोग भयभीत होकर इन बातो पर विचार कर ही रहे थे कि तभी उस घनघोर अधेरे मे तीन लाल आँखे दिखी जो उन लोगों की तरफ बढ़ रहीं थीं सभी लोग उस लाल आँख को देखकर आश्चर्य से भरे हुए और बुरी तरह से डरे हुए थे तभी वो लाल आँखो वाली भयावह शक्ति जोर जोर से हसने लगा हँसी इतनी भयावह और उग्र थी कि उस हसी को सुनकर सभी लोग अपने हाथों से अपने दोनों कानो को बंद करने की कोशिश करने लगे। सभी गाव के व्यक्ति को कुछ भी समक्ष नही रहा था कि हँसी की आवाज किस कोने से रही है कुछ ही देर के बाद वह हंसी की आवाज बंद हो गई और वह लाल आँखो वाली शक्ति गांव वालो के पास आकर खड़ा हुआ जो उस अधेरे मे भी काफी बड़ा लग रहा था जिसकी शारिरिक ऊचाई नौ फुट थी सभी गांव के लोग सिर उठाकर उस लाल आँखो को बस देख रहे थे जो एक कोयले की अंगार की तरह दहक रही थी तभी उस राक्षस ने कहा "तुम सब यहा कैसे गए किसने अनुमती दी है तुम्हे यहा आने की

चले जाओ यहा से वरना मैं तुम सब को मार दुगा भागो मेरे घर "

तभी अचानक से एक लाल रोशनी पूरी हवेली मे प्रज्वलित हुई और जब गांव वालों ने देखा कि उनके सामने एक राक्षस है जिसके सिर पर तीन आँखे है और उसकी शारीरिक ऊंचाई लगभग नौ से दस फुट है उसके बड़े बड़े बाल है और उसके सिर पर दो सींग है   और उसने ब्राहण के जैसे वस्त्र पहने हुए था  

सभी लोग इस दृश्य को देखकर दरवाजे की तरह भागकर गए पर जैसे ही लोग के पास पहुंचे दरवाज़े की किवाङ अपने आप बंद हो गयी सभी लोग सहम कर एक पल के लिए दरवाजे के पास ही खड़े हो गये और फिर दरवाजे को एक साथ खोलने की कोशिश की परन्तु सभी लोग नाकामयाब हो गए और डर के साये मे दरवाज़े को पीटने लगे

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तभी वह राक्षस उनके पीछे खड़ा हुआ और दहाड़ते हुए हॅसने लगा सभी लोग उसे हसता देख चिल्लाने लगे और बोले कृपया करके हमे जाने दो हम फिर कभी भी इस हवेली मे नही आएंगे कृपया हमे माफ कर दो और जाने दो

तभी उन लोगो मे से एक वृद्ध आदमी ने कहा क्या चाहिए तुम्हे हमसे हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है दरवाजा खोल दो ताकि हम बाहर जा सके हम तो बस यह देखने आये थे कि चिंतामणी की इस लाल हवेली मे यह अदभूत रोशनी कैसे प्रज्वलित हो गई  

तभी वह राक्षस बोला मै चिंतामणी ही हू पर अब मै एक ब्रह्मराक्षस बन चुका हु और इस लाल हवेली का स्वामी मै हु अगर कोई भी इस लाल हवेली में बिना मेरे आज्ञा के आएगा तो वह अपनी जान गंवा देगा  

तभी अचानक से दरवाजा खुलता है जो बंद था और बह्मराक्षस ने कहा जाओ मैने तुम सब को माफ कर दिया पर याद रहे यहा दुबारा कोई ना आने पाये जाओ भागो भाग जाओं

सभी लोग सर पर पैर रख कर भागे और लाल हवेली से बाहर निकले अगले दिन सुबह यह खबर पूरे गांव में फैल गई कि लाल हवेली मे एक बह्यराक्षस का वास है और वह बहुत ही भयावह और खौफनाक है कुछ दिन के बाद गांव के लोगो ने बताया जो भी व्यक्ति उस लाल हवेली के आस पास रहते हैं वह सभी किसी किसी बिमारी से ग्रस्त हो जाते हैं और उनके घरों के सदस्यों मे किसी ना किसी व्यक्ति की रहस्यमई तरह से मौत हो जाती है  

कभी कभी तो बह्मराक्षस को लोगों ने रात के समय लाल हवेली के बाहर भी घुमते हुए देखा था। जो भी व्यक्ति उस लाल हवेली के अंदर जाता था उसके शरीर पर बहुत सारे निशान मिलते थे और व्यक्ति की मानसिक स्थिति भी खराब हो जाती थी वह व्यक्ति पागल हो जाता था और उसकी मृत्यु कुछ ही दिन में हो जाती थी।

उस लाल हवेली और बह्मराक्षस का खौफ इतना हो चुका था कि लाल हवेली के पास रहने वाले सभी लोग वह स्थान छोडकर दूसरी जगह पर चले गए और लाल हवेली समय के साथ और भी भयावह और डरावना होता गया और कुछ सालों के बाद 1987  मे एक ऐसी घटना हुई जो लाल हवेली की इतिहास को हमेशा के लिए यादगार बना दिया  

1987 मे गोपालगंज में एक सरकारी अधिकारी जीत चौधरी अपने पूरे परिवार के साथ आए और उन्होंने अपने रहने के लिए लाल हवेली को खरीदने का फैसला लिया पर गांव के लोगो ने और उनके सह अधिकारियों ने बहुत समझाया कि वह उस हवेली का ना खरीदे और ना ही उस हवेली में जाए परन्तु जीत चौधरी ने उस हवेली को खरीद लिया उन्हे बह्य राक्षस के उपर बिल्कुल भी यकीन नही था  

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कुछ ही दिन बाद जीत चौधरी ने लाल हवेली की मरम्मत करवाने की सोची और उसके लिए मजदूरो को ढुढ़ना शुरू कर दिया पर उस लाल हवेली में बह्म राक्षस के खौफ के कारण कोई भी मजदूर वहा काम करने के लिए तैयार नहीं हुये फिर बहुत मस्कतो के बाद बहुत दूर से मजदूरों को बुलाया गया और हवेली में काम शुरू हो गया तभी एक रात एक जब सभी मजदूर बैठ कर हवेली के बाहर बाते कर रहे थे तभी एक बुढ़ा व्यक्ति उनके पास आया और उन सब को हवेली के अंदर जाने को कहा जैसे ही सभी मजदूर हवेली के अंदर गये हवेली पूरी तरह से एक महल की तरह सजी हुई थीं सारे कमरो मे परदे लगे हुए थे अंदर से पूरी हवेली एक सानदार महल की तरह चमक रही थीं सारी वस्तुएं वहा पर उपलब्ध थी तभी हवेली के सारे दरवाजे अपने आप बंद हो गये दरवाजे को बंद हुआ देखकर सभी लोग हैरानी से अपने आस पास देखने लगे तभी वह बुढ़ा व्यक्ति एक बह्यराक्षस मे बदल गया सभी व्यक्ति उस बह्यराक्षस को देखकर हवेली मे इधर उधर भागने लगे पूरी हवेली में बस उन मजदूरो की चिल्लाने की आवाज आने लगी मजदूर जिधर भी भाग कर जाते ब्रह्मराक्षस पहले से ही वहा मौजुद होता। हवेली के हर कमरे और कोने में एक बह्म राक्षस पहले से ही मौजूद था। पूरी हवेली में डर का माहौल बन गया

सभी लोग बस उस बह्म राक्षस को देखकर अपनी जान बचाना चाहते थे परंतु वह बह्म राक्षस ऐसा नहीं चाहता था तभी बह्म राक्षस ने सभी मजदूरों को हवा में उड़ा कर जमीन पर पटक दिया और मजदूरों को ऐसा लगा जैसे कोई अदृश्य शक्ति उन्हे पीट रही है सभी मजदूरों को उनके गाल और सिर पर थप्पड़ का अहसास हुआ जो बहुत दर्दनाक था। तभी हवेली फिर से एक खंडहर मे बदल गयी और वह ब्रह्मराक्षस भी गायब था तभी हवेली मे रखी सभी ईटे और पत्थर हवा में उड़ने लगी और उन सभी मजदूरों के ऊपर गिरने लगी जिससे सभी मजदूर लहु लुहान हो गये। और कुछ लोगो के सिर से खुन बहने लगा तभी पीछे से एक शैतानी आवाज आई

सब मरोगे कोई भी नही बचेगा जो भी इस हवेली में आएगा उसे अपनी जान गंवानी पड़ेगी

तभी दो मजदूरो ने किसी तरह से दरवाजे को खोल दिया दरवाजे के खुलते ही सभी लोग जैसे तैसे भाग कर हवेली से बाहर निकल आए बाहर आते ही सभी लोगों ने चैन की सांस ली और कभी उस हवेली मे जाने का प्रण लिया सारे मजदूर रात भर खौफ के साये में हवेली से दूर गांव में रात बिताई जब सुबह जीत चौधरी वापस हवेली के काम का मुआवना करने के लिए आये तब उन्होंने देखा सारे  मजदूर बहुत बुरी तरह से घायल है और हवेली का काम बंद है

मजदूरो ने उन्हे बताया कि किसी तरह बिती रात मे एक बुढ़ा व्यक्ति उन्हे हवेली के अंदर ले गया और एक ब्रह्य राक्षस ने उन पर हमला करके उन्हे जान से मारने की कोशिश भी की जीत सिंह वापस से हवेली के अंदर गये परन्तु उन्हे अंदर कोई भी दिखाई नही दिया वह वापस से बाहर आकर सभी मजदूरों को एक वैद्य से इलाज करवाया हवेली का काम वापस से बंद हो गया था और जीत चौधरी बस उस हवेली की मरममत जलद से जल्द करवाना चाहते थे पर कोई भी मजदूर उस ब्रह्म राक्षस के डर से वहा नही जाना चाहता था।

जीत सिंह ने वापस से किसी दूसरे गांव से मजदूरो को बुलाया और वापस से हवेली का काम शुरू करवा दिया कुछ ही दिन में हवेली की पूरी मरममत हो गई और जीत चौधरी का पूरा परिवार हवेली मे रहने लगे पर अब हवेली मे अजीबोगरीब घटनाये शुरू हो गई धीरज जोकि जीत चौधरी का बेटा था 


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और वह करीब 19 साल का था जब वह एक रात अपने कमरे में सो रहा था तभी रात को उसकी आँख खुली और वह डर के मारे बहुत तेज तेज चिल्लाने लगा क्युकि उसने देखा कि उसका बेड उल्टा होकर जमीन से आठ फुट ऊपर हवा में लटका है और उसका मुंह जमीन की तरह है। और धीरज अपने बेड से चिपका हुआ है और वह बिलकुल भी हिल डुल नही पा रहा है और वह चिल्ला चिल्ला कर अपने पिता जीत चौधरी को और बाकी के सदस्यो को बुलाना चाहता था पर कोई भी उसकी आवाज सुनकर नही आया तभी उसने देखा कि उसके वायी तरफ एक भयानक रूप मे एक ब्रह्म राक्षस सो रहा है और वह उस ही देख रहा है यह देखकर धीरज डर से बिलकुल चुप स्तब्ध होकर अपनी आख बद कर लेता है  

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पर जब सुबह हुई तो धीरज देखता है कि सब सामान्य है उसका बेड भी जमीन पर है और वह उस बेड  पर लेटा हुआ है जिसकी दिशा आकाश की तरफ है। धीरज को लगा कि यह शायद उसका कोई बुरा सपना था जो उसने देखा था ऐसे ही कई रात बीत गए और सर्दियों की एक रात धीरज को नीद नही रही थी तो वह  अपने बेड से उठकर अपनी खिड़की पर जाकर खड़ा हो गया और  घर से बाहर देखने लगा रात के समय बाहर चाँद की रोशनी पड़ रही थी जो बहुत ही खुबसुरत थी। तभी धीरज की नजर सामने एक पेड पर गई जो कि बरगद का था उस पेड़ की सबसे ऊँची डाल पर एक काले रंग की बिल्ली बैठी हुई थी जो सामान्य बिलियो की आकार से काफी बड़ा था और उसकी आँखे पूरी तरह से लाल थी जो रात मे कोयले की तरह चमक रही थी और वह बिल्ली कुछ मनुष्य की आवाज मे मंत्रो का उच्चारण कर रही थी जिससे देखकर धीरज हैरान हो गया उसने सोचा कि शायद यह उसका वहम होगा जो वह देख रहा है तभी वह अपनी आँखे बंद करके वापस खोलता है और यह देखकर आश्चर्य से भर जाता है क्युकी वह कोई वहम नही था वह सच मे एक बिल्ली थी तभी वह बिल्ली धीरज की तरफ देखती है और पेड से उतरकर कही गायब हो जाती है धीरज सोचता कि आखिर कार वह रहस्यमयी बिल्ली कहा गई होगी तभी वह बिल्ली उसके कमरे के दरवाजे पर बैठी हुई नजर आती है जो पलक झपकते ही एक बड़े से खुखार राक्षस का रूप ले लेती है यह देखकर धीरज जोर जोर से चिल्लाता है पर उसकी आवाज सुनकर कोई भी नही आता तभी धीरज को ऐसा महसुस होता है जैसे उसकी आवाज कोई भी नही सुन पा रहा है और वह ब्रह्मराक्षस धीरज के उपर हस रहा है

तभी उस ब्रह्मराक्षस ने धीरज के बाल को पकड़कर घसीटा और घसीटते हुए लाल हवेली से बाहर ले जाकर एक कुए के पास ले गया धीरज इस दौरान इतना ज्यादा डर चुका था कि उसके मुंह से आवाज तक नही निकल रही थी और तभी ब्रह्म राक्षस ने धीरज को उठाकर उस कुए मे पटक दिया

अगले दिन सुबह जब गांव के लोग कुए में पानी भरने गये तो धीरज की लाश को कुए में तैरता हुआ देख जीत चौधरी को बताया  

जीत चौधरी का पूरा परिवार इस तिलस्मी और अनसुलझे घटना पर यकीन नही कर पा रहे थे और फुट फुट कर रो रहे थे अब जीत चौधरी को भी गांव वालों की बात पर यकीन हो गया  

अब ऐसी घटना रोज रोज गांव में घटने लगी जिसमे कोई ना कोई उस ब्रह्म राक्षस का शिकार बनता और ब्रह्मराक्षस उसे अपनी शक्तियो से सताता था।

कुछ दिन बाद एक सन्यासी ने जीत चौधरी को बताया की तुम्हे कुछ अनुष्ठान करने होगे जिससे उस ब्रह्म राक्षस को मुक्ति मिल जाएगी और लाल हवेली पूरी तरह से तुम्हारा होगा  

जीत चौधरी ने नियमानुसार अनुष्ठान शुरू कर दिया और रोज सुबह सुबह पुजा पाठ और मंत्र उच्चारण करने लगे पर जब भी जीत चौधरी अनुष्ठान करते तो वह ब्रह्म राक्षस उनकी अनुष्ठान में बाधा डालता और कभी कभी तो तेज तेज मंत्राऊचारण करता जिसे सभी गाव के लोगो ने सुना था पर किसी को भी नही पता कि वह ब्रह्म राक्षस कहा से यह मंत्र उच्चारण करता था। परन्तु एक दिन जब जीत चौधरी अपने अनुष्ठान पर बैठे और अपनी अनुष्ठान को शुरू किया तभी ब्रह्म राक्षस अपने पूर्ण रूप मे प्रक्ट हुआ और जीत चौधरी के अनुष्ठान को रोक दिया जैसे ही जीत चौधरी ने ब्रह्म राक्षस को देखा उसके अंदर एक डर की सिहरन पैदा हुई और वह ब्रह्मराक्षस को देखकर अपने स्थान पर बैठे रहे तभी ब्रह्म राक्षस ने गुस्से से भरी हुई नजरो से देखा और जीत चौधरी के गर्दन को अपने हाथो से दबोच कर उठा लिया और हवा में उछाल कर फेक दिया  

ब्रह्म राक्षस " तुझे मैंने कितनी बार चेतावनी दी यहाँ तक की तेरे बेटे को भी मैने मार डाला फिर भी तुने जीद नही छोड़ी और मेरी इस हवेली मे रह रहा है पर आज मै तुझे भी मार दूंगा।

तभी जीत चौधरी को ब्रह्म राक्षस का माया जाल नजर आया

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उसके चारो तरफ वातावरण मे एक काला अंधेरा छा गया और ब्रह्मराक्षस ने अपनी शक्तियों से पूरी हवेली को नरक बना दिया जहा पर बहुत सारी आत्माओं, भुत प्रेत और पिशाच थे जो रोये जा रहे थे यह नजारा देख कर जीत चौधरी स्तब्ध हो गया उसकी सारी सुझ बुझ गायब हो गई तभी एक भुत आकर जीत चौधरी को उल्टा लटका देता है और सारी आत्माएं जीत चौधरी पर टुट पड़ती है और जीत चौधरी की सासे बंद हो गई और ब्रह्म राक्षस पास के पड़े एक झुले पर बैठकर जोर जोर से हसता है उसकी हसने की आवाज पूरे हवेली में सुनाई दे रही थी हसने की आवाज को सुनकर सभी लोग उस स्थान पर पहुंचते हैं जहा पर जीत चौधरी अनुष्ठान कर रहे थे और वह जीत चौधरी की लाश को देखकर दंग रह गए क्युकि जीत चौधरी की आँखे खुली हुई थी और उसका पूरा शरीर काला पड़ चुका था और सांस बंद थी। और पास वाला झुला हवा में हील रहा था जैसे उस पर कोई बैठा हुआ हो।

तभी लाल हवेली में रोने की आवाज शुरू हो गई और लाल हवेली पर और भी लोगो कि जान लेने का इल्जाम लग गया।

कुछ ही दिनों बाद लाल हवेली से जीत चौधरी के घर ले लोग हवेली को छोड़कर चले गए और वह लाल हवेली फिर से विरान हो गई।

 

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